सोमवार, 30 दिसंबर 2019

नया साल इस तरह मनायें...




नववर्ष की शुभकामनाओं  सहित बचपना’  में  इस बार प्रस्तुत कर रहा  नये साल पर  अपनी  यह  कविता 'नया साल इस तरह मनायें... '

      प्रेम रंजन अनिमेष  

 
नया साल इस तरह मनायें

 

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रस्‍ता देख रहे जो कबसे

उनके घर हो आयें जायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

पंछी  जो  चहचहा  रहे  हैं

तिनके उनके लिए सजायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

आँखें जो हैं भरी भरी सी

उनके होंठों से  मुसकायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

फूल खिले हों डाली डाली

ख़ुशबू के ख़त लिये हवायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 
बेघर   बूढ़ों    बेचारों   को

जीने का  आसरा  दिलायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

खेल खि‍लौने  दें  बच्‍चों को

सच सपनों का पाठ पढ़ायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

नेकी    अच्‍छाई     सच्‍चाई

रचें   बचायें   और   बढ़ायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

जीवन जेवन संग साथ हो

साझे चूल्‍हे  चल  सुलगायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

रोशन हो हर कोना कोना

लौ ऊँची कर  दिये जलायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

बैर   कोई  ग़ैर  न कोई

दुनिया  ऐसी  नयी  बनायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

जीवन चाहत मेल मुहब्‍बत

संदेसा   जग   में    फैलायें

 
नया साल इस तरह मनायें

 

आखर मधुर प्रेम केअनिमेष

सब सीखें  हिल मिल  दुहरायें

 
नया साल इस तरह मनायें

बरस नया इस तरह बनायें

 

लिये  सभी के लिए दुआयें 

शुभ मंगल का राग जगायें 

 

नववर्ष   की   शुभकामनायें...  

 
                        ~  प्रेम रंजन अनिमेष
 

 

शनिवार, 30 नवंबर 2019

मुन्नू जी का यादगार सफर




बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपने आनेवाले बाल कविता संग्रह  मीठी नदी का मीठा पानी  से अपनी  यह  प्यारी सी  कविता मुन्नू जी का यादगार सफर’ ! 

आशा है पसंद आयेगी
                                 ~ प्रेम रंजन अनिमेष

मुन्नू जी का यादगार सफर 


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नयी कार में  चले बैठ कर 
मम्मी  डैडी   दूर  सैर  पर 
मुन्नू  को   पहनाय  डायपर 
बड़े मजे में कटा वह सफर 


लौटने   पर   यूँ  गयी  भर 
चिकतियों से  त्वचा कातर 
सहम जाता है  सिहर कर
वह सफर के  नाम ही पर...
 प्रेम रंजन अनिमेष




शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

प्रकाश की ओर





बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपने आनेवाले बाल कविता संग्रह  आसमान का सपनासे अपनी कविता प्रकाश की ओर’ !
आशा है पसंद आयेगी
                                        ~ प्रेम रंजन अनिमेष


प्रकाश की ओर

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जगमग  घर  हो  जगमग ऑंगन
जगमग अग जग जगमग जीवन


सूरज  चॉंद  सितारे  दीपक
ले जायें  रोशनी  सभी  तक


धरा गगन तक  रचे रँगोली
गूँजे    नेह   नहायी   बोली


भरा  हुआ  हो  सबका  दामन
मिला जुड़ा मन से हर इक मन 

 प्रेम रंजन अनिमेष






रविवार, 29 सितंबर 2019

आगत





बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपने आनेवाले बाल कविता संग्रह  आसमान का सपना  से अपनी यह कविता आगत’ !
आशा है पसंद आयेगी

                                      ~ प्रेम रंजन अनिमेष


आगत

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कितना  भविष्‍य  सुंदर लगता
कल उन्‍नत और प्रखर लगता


सरसर   फरफर   आते  जाते
बच्‍चे      विलायती    बतियाते


सुन   सुन    घरवाले   इतराते
बाहरवाले      भी      चकराते


फिर सोचो तो क्‍यों डर लगता
खतरा  अंदर अंदर  लगता…?


 प्रेम रंजन अनिमेष


गुरुवार, 29 अगस्त 2019

आजादी की सालगिरह पर



बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी कविता आजादी की सालगिरह पर’ !  
 आशा है पसंद आयेगी

                                 ~ प्रेम रंजन अनिमेष


आजादी की सालगिरह पर


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आजादी  की  सालगिरह  पे
निकल पड़े बच्‍चे अधनंगे
ओस आस भरकर ऑंखों में
लिये हुए  कागजी  तिरंगे 



उसी उमर के हैं जो बच्‍चे
लेकिन  खाते पीते  अच्‍छे
सजी धजी पोशाकें पहने
उनको   ये   झंडे   बेचेंगे



झंडे ले  लहरा  लहरा  कर
बच्‍चे  वे   झूमे  गायेंगे
बेच सके जो ये बेचारे
आज शाम कुछ खा पायेंगे



वरना पिछली बारी जैसे
यूँ ही  रहे  उदास  तिरंगे
तो क्‍या फिर दिन और एक ये
रह   जायेंगे   भूखे   नंगे



दिन अपनी आजादी का है
क्‍या  इतनी  छोटी  चिंतायें
सब मिल जुल कर खुशी मनायें
जन-गण-मन गायें दुहरायें… !

 प्रेम रंजन अनिमेष





सोमवार, 29 जुलाई 2019

भोर विभोर



'बचपना' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपने आने वाले बाल कविता संग्रह  'मीठी नदी का मीठा पानी' से अपनी यह नन्ही प्यारी सी कविता ' भोर विभोर ' !

आशा है पसंद आयेगी 

                                                                        ~ प्रेम रंजन अनिमेष 

भोर विभोर

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दुनिया देदीप्यमान 
देश उदीयमान...!




मुन्ना मन में मान 
सोया सुबह सुबह सपनों की चादर तान 




जबकि सिर पर चढ़ आया 
सूरज सा फिर इम्तिहान... !




बुधवार, 26 जून 2019

निपट अटपटा गीत




बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपने आनेवाले बाल कविता संग्रह  मीठी नदी का मीठा पानी  से अपना यह नटखट  निपट अटपटा  गीत  !
आशा है मन को भायेगा खूब पसंद आयेगा 



                                  प्रेम रंजन अनिमेष 

अटपट 


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क्या झटपट 
क्यों चटपट 
सरपट    से 
सब खटपट 


सिर   घूँघट 
उस पर घट
दूर      कहीं 
है    पनघट 


झाँके    तट 
से   तलछट 
गोरी     की 
काली   लट 


हर पल खट 
कुट पिस कट 
रोटी    ओट 
  ही   पट 


वंशी     वट 
मन की रट 
रस्सी    पर 
जीवन  नट 


फिर अनघट 
कुछ  संकट 
कैसी       है  
यह  आहट...?

                                  प्रेम रंजन अनिमेष