‘बचपना’ में इस बार अपनी यह कविता ‘बस्ती की पाठशाला’ प्रस्तुत कर रहा हूँ
~ प्रेम रंजन अनिमेष
बस्ती की पाठशाला
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भूखे पेट सँभाले स्लेट
पहुँचा बच्चा पढ़ने लेट
गुरुजी लगे दिखाने गेट
पीछे सँसर रही थी गेठ
बालक अपने कान उमेठ
बोला और न होगी हेठ
गुरुवर बरसे पान लपेट
चल जा
सबसे पीछे बैठ...!
~ प्रेम रंजन अनिमेष
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