नवसंवत्सर
की शुभकामनाओं सहित ‘बचपना’ में इस बार साझा कर रहा
अपनी यह नन्ही सी कविता ‘बालसुलभ’
~ प्रेम रंजन अनिमेष
बालसुलभ
µ
मुच्छी बड़ी कि हो पुच्छी
वे चीजें जो हैं अच्छी
पीछे उनके भी क्यों छी
चुभलाते रोटी छूछी
बात किसी ने ये पूछी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें