होली व नये संवत की शुभकामनाओं के साथ ‘बचपना’ में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता ‘रंग के बारे में धूल सने एक बच्चे के विचार...’
~ प्रेम रंजन अनिमेष
रंग के बारे में धूल सने एक बच्चे के विचार
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न मैं ऐसा
जो सोख ले सब रंग
न वो
जो लौटा दे सारे
न कोरा उजला
न ही पूरा काला
सतरंग के बीच का
कोई रंग मैं
आत्मसमर्पण संकेत सा
निष्प्रभ श्वेत नहीं
शांति प्रतीक कबूतर के पंख
सा
मटमैला आसमानी…
अच्छी कविता . क्या संयोग है ? मेरी भी एक कविता है रंग पर्व जिसे मैंने अपने ब्लॉग पर आज ही प्रस्तुत किया है। http://aruncroy.blogspot.in/2018/03/blog-post.html
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