बुधवार, 13 दिसंबर 2017

अगवानी




जातेे साल को शुभ विदा कहते और आने वाले नववर्ष का शुभ स्वागत करते बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह नन्ही कविता अगवानी...
  
                    ~ प्रेम रंजन अनिमेष

अगवानी   

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जाने वाले को यूँ ही नहीं जाने देना
यही तो बीते समय ने सिखलाया

जाया नहीं होने दिया कैलेंडर पुराना

उसके पन्नों की लगा ली जिल्द
आने वाले साल की किताबों पर...




सोमवार, 13 नवंबर 2017

बच्चों का दिन




आज बाल दिवस है । और मेरे दोनों बच्चों का जन्मदिन भी ! प्यारे जुड़वा !! अभिनव अनुभव !! आज वे चौदह वर्ष के हुए । तो 'बचपना' में इस बार अपने दूसरे कविता संग्रह से यह कविता 'जन्मदिन' अभिनव उन्मेष और अनुभव उत्कर्ष के लिए अनगिन जन्मदिन की अनगिन शुभकामनाओं के साथ... घर परिवार बंधु बांधव मीत सखा स्वजनों परिजनों में जो धैर्य शौर्य की तरह भी जाने जाते हैं...
                प्रेम रंजन अनिमेष 
जन्मदिन


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वह पहली रुलाई
पहले बोल
माँ का पहला परस
पहले पय की पहली बूँद का आस्वाद



पहली किलक
पहली पुलक
पहला स्वप्न
पहली बेचैनी




मुँह लगी पहली मिट्टी
पहला अन्न अक्षर पहला 



लिख कर रख लो
सँजो लो
सब कहीं



जब पहचान कर मुसकुराया
तुम हो कौन बतलाया



जब सरका पहले पहल
पलटा बैठा उठा
वह गिरना पहली बार सँभलना
मचलना अपने आप बहलना



अंकित कर लो सारे क्षण



जिस दिन पकड़ना आया
और उठाना
जिस दिन बाँटना सीखा
और छुपाना



पहला दाँत पहली काट
पहला झूठ पहली चोट
पहला पाठ पहली डाँट



पहला मोह
प्रथम बिछोह
पहला दर्द
पहला चाँद
पहली याद...



एक नहीं
कई जन्मदिन है बच्चे के
और हर अपने आप में
एक अभिनव अनुभव...!  


                   ~  प्रेम रंजन अनिमेष



सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

आतिशबाजियाँ बनाने वाला बच्चा



ज्योतिपर्व दीपावली की ढेरों शुभकामनाओं के साथ 'बचपना' में इस बार आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता 'आतिशबाजियाँ बनाने वाला बच्चा'
    
             
                     ~  प्रेम रंजन अनिमेष



आतिशबाजियाँ बनाने वाला बच्चा

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रंग रोशनी और आवाज़ सजा
औरों के लिए आतिशबाजियाँ बनाने वाला बच्चा
कौन जानता उसके हिस्से अँधेरा कितना
और उस अँधेरे में कितना सन्नाटा
कितना कोरा उसके जीवन का पन्ना


कौन इस अँधेरे से उसे छुड़ाएगा
उसके घर दिया कौन जलाएगा... ?



गुरुवार, 28 सितंबर 2017

बु‍ढ़िया के बाल...




बचपना में इस महीने साझा कर रहा अपनी यह कविता  बु‍ढ़िया के बाल...’   

                                      प्रेम रंजन अनिमेष

बुढ़ि‍या के बाल  


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बु‍ढ़िया के बाल...!

बचपन में मिलती थी
इस नाम की मिठाई
जो हमने खूब खाई


पर बुढ़ि‍या का
हाल कभी नहीं पूछा
न यह जाना
क्यों बेचे बाल अपने बुढ़िया ने
और बाल बेचकर
वह गयी कहाँ ?


आज के इस दौर इस बाजार में
दिखते व्यंजन मिष्टान्न तरह तरह के
पर नहीं कहीं
वे बाल बुढ़ि‍या के


न कहीं
सुनहले बालों वाली
वह बुढ़ि‍या ही...    
  





सोमवार, 28 अगस्त 2017

बच्चे की स्लेट पर लिखे कुछ सवाल




पहले कविता संग्रह 'मिट्टी के फल' से एक कविता ~ 

'बच्चे की स्लेट पर लिखे कुछ सवाल '


पहले दोनों संग्रह 'मिट्टी के फलऔर 'कोई नया समाचार', जो क्रमश: प्रकाशन संस्‍थान एवं भारतीय ज्ञानपीठ से 2001 व 2004 में आये थेजल्‍दी ही आउट ऑफ प्रिट हो गये और फिलहाल अनुपलब्‍ध हैं । कई लोग अब भी इन संग्रहों को ढूँढ़ते हैं । दोनों ही प्रकाशकों से आग्रह किया है । देखें वे पुनर्मुद्रण कब करवाते हैं और किताबें कब तक उपलब्‍ध होती हैं इस बार पहली किताब से यह कविता ' बच्‍चे की स्‍लेट पर लिखे कुछ सवाल जो बहुत से लोगों की विशेष पसंद है
                                     
                     - प्रेम रंजन अनिमेष

बच्चे की स्लेट पर लिखे कुछ सवाल
  बच्चे की स्लेट पर लिखे कुछ सवाल



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क्या सच में एक दिन
स्वच्छ जल रह जाएगा केवल नारियल में
और ख़ाली बाँस के खोल में साँस की हवा


क्या बस जुगनुओं में रह जाएगी सच की लौ
और उर्वर  मिट्टी केंचुओं के बिल में



श्यामपट इतना बड़ा कोरा फ़ैला हुआ
और ज़रा-सी खड़िया नहीं होगी
'
छुट्टीलिखने के लिए भी



क्या सच में एक दिन
झींगुरों के पास ही रह जाएगी पुकार
और चिड़ियों को भी
सुबह होने का पता नहीं चलेगा...?

                          
                        ~ प्रेम रंजन अनिमेष

सोमवार, 17 जुलाई 2017

हूँ मैं क्या...



बचपना में हर महीने बच्चों के लिए अपनी कोई कविता प्रस्तुत करता रहा हूँ । इस बार साझा कर रहा यह नन्ही सी कविता हूँ मैं क्या...’ जो बचपन में पढ़ी अंग्रेज कवि टेनिसन की पंक्तियों से प्रेरित है  

                                    प्रेम रंजन अनिमेष


हूँ मैं क्या !


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लेकिन हूँ मैं क्या...?

रात में रोता हुआ बच्चा
रोशनी को तड़पता बच्चा
पास जिसके है नहीं भाषा

इस रुदन के सिवा...!   




शुक्रवार, 23 जून 2017

अकार



बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता  अकार’  

                                     प्रेम रंजन अनिमेष


अकार


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सरे बाजार
देख चमचमाती खिलौना कार


कौतुक करता
समझाता अपने को
बच्चा समझदार


हर किसी को क्यों
चाहिए कार


जबकि वर्णमाला में
आता सबसे पहले


अकार...!


मंगलवार, 30 मई 2017

आहाना





जेठ का धूप और धूल से नहाया महीना...! जेठ का मतलब बड़ा । इस जेठ में बचपना के मंच पर प्रस्तुत कर रहा अपनी यह नन्ही कविता आहाना...
  
                   ~ प्रेम रंजन अनिमेष

आहाना


µ


आहाना
नाम एक बच्ची का
सुन कर हँसा
बिंदु समेत चाँद आधा


यानी कुछ भी अगर जाये पूछा
तो करोगी पहले – आँ...?  
फिर हाँ
और फिर झट से कह दोगी ना...!   





गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

कविता संग्रह ‘कोई नया समाचार’ से कविता ‘पहला नाम’



बचपना में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपने संग्रह कोई नया समाचारसे कविता पहला नाम...
  
                    ~ प्रेम रंजन अनिमेष

पहला नाम 


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बच्चे ने जाना
माँ  
चूल्हे की आग का
दूसरा नाम है


बच्चे ने जाना
माँ  
त्याग का
दूसरा नाम है


माँ का पहला नाम
ढूँढ़ रहा है बच्चा...



सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

सच्ची चाहत

जाता वसंत और आता फागुन...! ‘बचपना की बगिया में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी इस नन्ही कविता का पुष्प...
  
                    ~ प्रेम रंजन अनिमेष

सच्ची चाहत


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औरों की तरह नहीं वह बच्चा
रंग बिरंगी तितलियों के पीछे भागता
सतरंग क्या लेना उन परों वाला 
सत सुवास चाहता संजोना
खिलते खि‍लखिलाते फूलों का... 




मंगलवार, 24 जनवरी 2017

एक बच्चे की प्रस्तावना



बचपना में अपनी कविता एक बच्चे की प्रस्तावना आपके सामने रख रहा हूँ इस बार

                   ~ प्रेम रंजन अनिमेष


एक बच्चे की प्रस्तावना 


µ


कहूँगा
तो क्या
सब संकल्प एक लेंगे...?


मिलकर
मिटा देंगे


अपनी भाषा
अपने व्यवहार से
अपने जीवन
अपने संसार से


गाली


माँ
बहन
बेटियों
वाली...?