बुधवार, 11 मई 2016

हड़बड़ी

अपनी यह कविता हड़बड़ी’ प्रस्तुत कर रहा बचपना’  में इस बार  

                                      प्रेम रंजन अनिमेष


हड़बड़ी
 



लगी हर तरफ  हड़बड़ दड़बड़
भीतर बाहर  धड़फड़  धड़फड़


होड़  मची  है  दौड़  लगी है
दिन  बेसुध है  रात  जगी है


कुछ भी हो मुश्क‍िल रुक पाना
कैसा  है  यह  नया  जमाना


बोलें   बूढे़   बाबा    बड़बड़
काम  करे है  हड़बड़  गड़बड़




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