‘बचपना’
में इस बार अपनी एक छोटी सी कविता प्रस्तुत
कर रहा ~ ‘मेला’
! पाँच पंक्तियों
की अपनी इन कविताओं को पाखी कहा करता हूँ मैं जो अमूमन एक स्वर की टेक लेती हैं । ऐसी
ढेर सारी कवितायें लिखी हैं पिछले कुछ सालों में । इतनी कि संग्रह आ सकते हैं इनके
। इस बारे में बात फिर कभी । फिलहाल यह कविता ‘मेला’
~ प्रेम रंजन अनिमेष
मेला
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मेला मेल से बना
वह तो सबके मिलने जुड़ने की जगह
फिर वहीं लोग सबसे ज्यादा
भटकते भूलते क्यों भला
कोई यह पहेली दे सुलझा...
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