'बचपना' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह बाल कविता ‘अंजर पंजर’ ! आशा है पसंद आयेगी
~ प्रेम
रंजन अनिमेष
अंजर पंजर
रस्ते कितने ऊबड़ खाबड़
चलते हिलते अंजर पंजर
साल साल
सरकार बनाये
कोई इनसे पार न पाये
लगती धूप
यहाँ छाँवों में
गड़ते हैं रोड़े पाँवों में
सोचा आज चलूँ
पहियों पर
हुई साइकिल लेकिन पंक्चर
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µ
प्रेम रंजन अनिमेष
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