वसंतपंचमी की शुभकामनाओं के साथ ''बचपना' में इस बार प्रस्तुत
कर रहा अपनी यह वाग्देवी
वंदना
~ प्रेम रंजन अनिमेष
विद्यादायिनी वर दे... µ
पुस्तक हर इक कर में धर माता
सबमें पढ़ने की रुचि भर माता
शब्दों में है जितनी
सच्चाई
लोगों में है जितनी अच्छाई
लोगों में है जितनी अच्छाई
उसको पूर्ण प्रकाशित कर माता
प्राणवान हर स्वर हर व्यंजन हो
जीवन में धड़कन
हो जीवन हो
अक्षर हों सचमुच अक्षर माता
हाथ लेखनी लिये
रचे फिर से
मन की पाती हृदय रचे फिर से
हर अंतर भावों से
भर माता
देखें सच सपने दोनों
आँखें
दर्पण में गत आगत सँग झाँकें
सत शिव को कर सुंदरतर माता
असत आज है क्यों इतना आगे
भला अकेला रातें क्यों जागे
पुण्यों को कर प्रखर मुखर माता
यह जग पहले से इतना
अनुपम
ज्ञान हमें दें मिल कर इसको हम
और बना
दें श्रेयस्कर
माता
आयें चाहे कितनी
बाधायें
अपने पथ पर बढ़ते ही जायें
~ प्रेम
रंजन अनिमेष
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