गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

है पृथ्वी

 

 

'बचपना' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता                       है पृथ्वी’ ! आशा है पसंद आयेगी 

                               ~  प्रेम रंजन अनिमेष

 

 

है पृथ्वी

 

µ

 


दिन अच्छे अभी नहीं आये

फिर भी है उम्मीद से

आसमान है पृथ्वी 

 

भले गहरे

ये अँधेरे 

अंतस के उजास से 

प्रकाशमान है पृथ्वी 

 

हर सांझ डूब कर 

हर भोर दिनमान सदृश

उदीयमान है पृथ्वी 

 

नयी किलक जैसी

खिलते फूल की तरह

विकासमान है पृथ्वी 

 

जीवन जुगाये स्त्री सी 

धरती सरीखी सब कुछ धरती

भंगुर तन में शाश्वत 

मन का मान है पृथ्वी 

 

चारों ओर नष्ट होती नश्वरता

और इठलाते ऐश्वर्य के बीच

विद्यमान है पृथ्वी


गत आगत के साथ

वर्तमान है पृथ्वी... 

 

                               🟢

                                           प्रेम रंजन अनिमेष

 

 

 


शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

जलेबी

 

'बचपना' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता  ' जलेबी '  ! आशा है पसंद आयेगी।  प्रतिसाद की प्रतीक्षा रहेगी

 

                                  ~  प्रेम रंजन अनिमेष

 

जलेबी

 

µ

 

देख छन छन छन रही है

फिर  जलेबी  बन रही है

 

गोल उलझा सा  बदन है

सधे  हाथों  की  लगन है

 

रूप    कैसा   तमतमाता

खींचता  मन को लुभाता

 

रूठ कर फिर मन रही है

चाशनी  में  सन  रही  है

 

                            🟢

                                        प्रेम रंजन अनिमेष

 

 

मंगलवार, 29 सितंबर 2020

झंडे, आजादी और शहीद स्मारक

 

'बचपना' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी तीन बाल कवितायें, जो किलकारी बिहार बाल भवन से बच्चों के लिए नियमित रूप से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'बाल किलकारी' में पिछले महीने यानी अगस्त 2020 अंक में प्रकाशित हुई हैं । तीनों ही किसी न किसी तरह स्वतंत्रता के सन्दर्भ और परिप्रेक्ष्य से जुड़ी  भाव अर्थ छवियों वाली कवितायें हैं । नन्ही मगर सोच विचार करने के लिए प्रवृत्त करने वाली ।  आशा है पसंद आयेंगी              

                                                           ~   प्रेम रंजन अनिमेष 



सोमवार, 31 अगस्त 2020

गुरुजनों के प्रति



डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृति में उनके जन्मदिन पाँच सितम्बर को हमारे यहाँ  शिक्षक दिवस के रूप में मनाया  जाता है। यह दिन अपने गुरुजनों को सादर स्मरण करने का सुअवसर है ।  तो सोचा क्यों न 'बचपना' के मंच पर इस बार साझा की जाये गुरुजनों को समर्पित अपनी यह कविता : 'गुरुजनों के प्रति'

                                        ~  प्रेम रंजन अनिमेष

गुरुजनों के प्रति
 

µ                             

 

ब्रह्मा   विष्णु   महेश   हैं  गुरुजन

सच अति सहज विशेष हैं गुरुजन
 

ज्ञान   शलाका  से    खोल  आँखें 

भरते  उजास अशेष   हैं  गुरुजन
 

उँगली   पकड़    सिखाते  चलना

पथ  हैं  और  परिवेश  हैं गुरुजन
 

यह  तन  क्या   माटी  का  पुतला 

इसमें   प्राण  प्रवेश   हैं   गुरुजन
 

जीवन   के   वन  में   जी  भटका

बोध   दिशा  निर्देश   हैं   गुरुजन
 

मन    मानस    अंतरतम   निर्मल  

जागृत   हृदय  प्रदेश   हैं  गुरुजन

 
तोड़  के  बंधन  काट के  उलझन

हरते   सारे   क्लेश    हैं   गुरुजन

 
भव के  भँवर से  तार के तट तक

लाते    खींचे    केश   हैं   गुरुजन
 

उन  बिन  जायें   और  कहाँ  हम 

देश  आदेश  उपदेश  हैं  गुरुजन
 

नृप   अधिपति    बहुतेरे   जग  में 

सर्व   सुलभ   सर्वेश   हैं   गुरुजन
 

सब   मंगल  कल्याण  के  कारक

हर शुभ  का  श्रीगणेश  हैं गुरुजन
 

पुण्य   सुफल    सारे   जन्मों   का 

सत का  सकल निवेश  हैं गुरुजन
 

पीर   फ़क़ीर  अमीर  हैं   मन  के

जोगी   दिल  दरवेश   हैं  गुरुजन
 

इस  असार  संसार  में   'अनिमेष'

मधुमय   प्रेम  संदेश   हैं   गुरुजन
 
                ~  प्रेम रंजन अनिमेष
                                                                                                                                                      

बुधवार, 29 जुलाई 2020

विद्यालय की याद में बच्चे




देश और दुनिया में अभी जो परिस्थितियाँ हैं उनके चलते विद्यालय महीनों से बंद हैं।  ऑनलाइन कक्षायें तो शुरू हुई हैं लेकिन विद्यार्थियों को   विद्यालय परिसर से दूर रखा गया है ताकि विषाणु संक्रमण से बचाव सुनिश्चित किया जा सके । छुट्टियाँ तो अच्छी हैं पर इतनी लम्बी छुट्टी ? कुछ इन्हीं मनोभावों पर अपनी यह कविता विद्यालय की याद में बच्चे साझा कर रहा  'बचपना' में इस बार

                                ~  प्रेम रंजन अनिमेष

 विद्यालय की याद में बच्चे

 µ

घर से ही
प्रार्थना कर रहे
हाथ जोड़ कर बच्चे 


दिनों महीनों हो गये
स्कूल की घंटी सुने हुए 


रीती कब की
बैठे बैठे 
मौज पिटारी 


होकर ढीली
उतर गयी
जंजीर सायकिल की 


डपटा किसको करते होंगे अब मास्टर जी
भौंक रहा किस पर होगा आवारा मोती  


सपनों में परकाल लगा
कोशिश करते लें खोल किस तरह
ताला शाला मुख्य द्वार का 


इतनी लंबी छुट्टी भी
किसको भला भली लगती...
                                                         
                                                                                                  
प्रेम रंजन अनिमेष

मंगलवार, 30 जून 2020

तीन बाल कवितायें ~ 'बाल किलकारी' जून 2020 से



'बचपना' में इस बार साझा कर रहा अपनी तीन बाल कवितायें ~ 'साफ़ सफ़ाई', 'फल की उदासी' और 'तालाबंदी' ~ जो बाल भवन,  पटना से प्रकाशित  मासिक  बाल पत्रिका 'बाल किलकारी' में  इस माह यानी जून 2020 अंक में छपी हैं । ये कवितायें देश और विश्व की वर्तमान परिस्थितियों से भी जुड़ी हुई हैं ।  आशा है पसंद आयेंगी,,,
                                          ~  प्रेम रंजन अनिमेष

 

शनिवार, 30 मई 2020

आये कोरोना को रोना...




कोरोना अब जान गया है बच्चा बच्चा ! इस आस विश्वास के साथ कि  सब सुकशल होंगे अपने अपने घरों में अपनी यह नन्ही सी बाल कविता आये कोरोना को रोना प्रस्तुत कर रहा 'बचपना' में इस बार,,, 
                                      ~   प्रेम रंजन अनिमेष



🍁    आये   कोरोना   को   रोना    🍁
 
µ

 
समय कठिन मत धीरज खोना

सजग  सबल   इसमें  है  होना

 

एक   एक  कर   देता   दस्तक

पहुँच  रहा  है  सबके  दर तक

 

आया   यह  आजार   नया   है

खौफ  हर तरफ  फैल गया  है

 

मिल कर  ऐसी  दवा करो ना

आये    कोरोना    को    रोना

 
🌺🌹🌻🌷🌸

  प्रेम रंजन अनिमेष