गुरुवार, 28 सितंबर 2017

बु‍ढ़िया के बाल...




बचपना में इस महीने साझा कर रहा अपनी यह कविता  बु‍ढ़िया के बाल...’   

                                      प्रेम रंजन अनिमेष

बुढ़ि‍या के बाल  


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बु‍ढ़िया के बाल...!

बचपन में मिलती थी
इस नाम की मिठाई
जो हमने खूब खाई


पर बुढ़ि‍या का
हाल कभी नहीं पूछा
न यह जाना
क्यों बेचे बाल अपने बुढ़िया ने
और बाल बेचकर
वह गयी कहाँ ?


आज के इस दौर इस बाजार में
दिखते व्यंजन मिष्टान्न तरह तरह के
पर नहीं कहीं
वे बाल बुढ़ि‍या के


न कहीं
सुनहले बालों वाली
वह बुढ़ि‍या ही...