रंगपर्व होली और भारतीय नवसंवत अर्थात नये वर्ष की शुभकामनाओं सहित ' बचपना ' के इस बाल सृजन पटल पर इस बार साझा कर रहा अपनी एक नन्ही प्यारी मगर सार्थक सारगर्भित कविता ' मन माने की बात ' ! विश्वास है मन को छुयेगी और भायेगी

मन माने की बात
~ प्रेम रंजन अनिमेष

अब भला
मानने और मनाने वाला
कोई कहाँ
होली
मान समझ लो
हो ली
किसी रंग का
होना
अगर किसी का छूना
बुरा न जाये माना
और बन सके
हिलने मिलने जुलने घुलने का
कच्चा पक्का झूठा सच्चा सा
एक बहाना
न लगे कहीं
दिल को
अब तो इतनी ही
और यही
है अपनी
होली...

( आने वाले कविता संग्रह ' अवगुण सूत्र ' और ' आज राज समाज ' से )
