'बचपना'
में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता ‘ घर संसार ‘ ! आशा है पसंद आयेगी । प्रतिसाद की प्रतीक्षा रहेगी
~ प्रेम रंजन अनिमेष
घर संसार
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प्रेम रंजन अनिमेष
अब तो रोक चरण घर रखिये
घर में लिये
शरण घर रखिये
बाहर सहमा सहमा
आलम
हर रफ्तार गयी
जैसे थम
भीतर लेकिन
द्वार खुला है
घर में ज्यों संसार खुला है
यह सुख किये वरण घर रखिये
जीतेंगे हम
रण घर रखिये
✍️ प्रेम रंजन अनिमेष