शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

 

'बचपना' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता फिर जीवन…’ ! आशा है पसंद आयेगी।  प्रतिसाद की प्रतीक्षा रहेगी

 

                                       ~  प्रेम रंजन अनिमेष

 

फिर जीवन...

 

                                                µ                                                                                    

       फिर जीवन सूरज निकलेगा

 

फैला दूर तलक अँधियारा

स्याह हुआ जैसे जग सारा

 

चीर नयी किरणों से तम को

लिये नयी सज धज निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

आग  जुगाई  हुई  कहीं है

जहाँ  चाह  है  राह वहीं है

 

उम्मीदों पर  दुनिया कायम

रख थोड़ा धीरज  निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

यह मत कहना बचा नहीं कुछ

बहुत  दिनों से  रचा नहीं कुछ

 

लाल फलक पर  बाल चितेरा

लिये कलम कागज निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

पानी अभी  समय का  ठहरा

उस पर  कीच पंक का पहरा

 

इसी  कीच  से  इसी  पंक से

हो सरसिज पंकज निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

आयेंगे     दिन    पहले  वाले

और अधिक उजले उजियाले

 

फिर वसंत नव मन उपवन में

सुंदर  और  सहज  निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

माना  बहुत  अभी कठिनाई

लेकिन  यह भी  तो  सच्चाई

 

अगर  हौसला है  आखिर में

हर संकट  पदरज निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

हार कभी मत  माना करना

जीते जी तो  कभी  न मरना

 

नये  भोर का  हरकारा  फिर

करता यही अरज  निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 

होंठों  पर  मुसकान अभी है

सुर है  लय है  तान  अभी है

 

सरगम संग नयी ले 'अनिमेष'

नन्हा  नया  षड़ज  निकलेगा

 

 फिर जीवन सूरज निकलेगा...

 🌻

 प्रेम रंजन अनिमेष