'बचपना' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता ‘है
पृथ्वी’ ! आशा है पसंद आयेगी
~ प्रेम रंजन अनिमेष
है पृथ्वी
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दिन अच्छे अभी नहीं आये
फिर भी है उम्मीद से
आसमान है पृथ्वी
भले गहरे
ये अँधेरे
अंतस के उजास से
प्रकाशमान है पृथ्वी
हर सांझ डूब कर
हर भोर दिनमान सदृश
उदीयमान है पृथ्वी
नयी किलक जैसी
खिलते फूल की तरह
विकासमान है पृथ्वी
जीवन जुगाये
धरती सरीखी सब कुछ धरती
भंगुर तन में शाश्वत
मन का मान है पृथ्वी
चारों ओर नष्ट होती नश्वरता
और इठलाते ऐश्वर्य के बीच
विद्यमान है पृथ्वी
गत आगत के साथ
वर्तमान है पृथ्वी...
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प्रेम रंजन अनिमेष