पिछले
दिन कोरोना प्रसार रोकने के इरादे से किये गए आवाजाही के विराम के दौरान एक पक्षी
परिवार के अपने बाल बच्चों सहित इतमीनान से हवाई
पट्टी पार करने का अद्भुत दृश्य सामने आया। उसी
सन्दर्भ में देश और विश्व वर्तमान संकट से
यथाशीघ्र उबरे इस कामना और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः...' की
सनातन शुभेक्षा के साथ ‘बचपना’ में
इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी कविता 'सपरिवार'
~ प्रेम रंजन अनिमेष
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सपरिवार


अदृश्य अतिसूक्षम के
प्रसार से डरे
इंसान ने तय किया है
फिलहाल अपनी हद में रहे
अपने दायरे अपनी औकात में
इसलिए सड़कें
खाली खाली हैं
बाजार बंद रास्ते खुले
पटरियाँ ऊँघती
विमानतल शांत
न बायें देखना अभी न दायें
घास के बीच बिछी
उस चिकनी पट्टी को इस समय
कर रहा पार
गरदन उचकाते बेफिक्र पंछी परिवार
चिड़ी चिड़े चूजों का समाहार
इंसान ने तय किया है
फिलहाल अपनी हद में रहे
अपने दायरे अपनी औकात में
इसलिए सड़कें
खाली खाली हैं
बाजार बंद रास्ते खुले
पटरियाँ ऊँघती
विमानतल शांत
न बायें देखना अभी न दायें
घास के बीच बिछी
उस चिकनी पट्टी को इस समय
कर रहा पार
गरदन उचकाते बेफिक्र पंछी परिवार
चिड़ी चिड़े चूजों का समाहार
मानों सांध्य समीर नयी भोर की बयार
वही जो चल रही और रहेगी चलती
जबसे और जब तक
प्यार
और यह संसार
जैसे मन में मुक्त विचार...

प्रेम रंजन अनिमेष