‘बचपना’ में साझा कर रहा इस बार अपनी यह नन्ही सी कविता ‘बिसरना’ ! आशा है पसंद आयेगी
~ प्रेम रंजन अनिमेष
बिसरना
याद
नहीं नाना नानी की
याद
नहीं दादा दादी
की
छोटा
था तो गुजर गए वे
बड़ा
हुआ तो बिसर गए वे
होता
कैसा उनका होना
सूना
है मन का इक कोना
यही
नहीं माँ पास है कहाँ
छवि
कोई तेरी शादी की !
~ प्रेम रंजन अनिमेष