इस बार ‘बचपना’
में जरा बड़ी सी कविता – आकार में नहीं
अर्थ में ! कविता लिखते हुए यह जहन में कहीं नहीं था कि बच्चों के लिए लिख
रहा । मगर उनकी समझ को कम कर नहीं आँकना चाहिए । शायद आज के दौर में बड़ों से अधिक
यह बच्चों के लिए मायने रखती है। यही सोचकर अपनी यह कविता ‘ तमाशा…’
साझा कर रहा ‘बचपना’
में
~
प्रेम रंजन अनिमेष
तमाशा
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गालिब ने तो कहा
यह दुनिया
बच्चों के खेल का मैदान
पर हम आज के इनसान
बनाना चाहते इसे
कंक्रीट पत्थरों का परिसर आलीशान
सब उसी ओर रहे दौड़
आधी नींद में जागे
होता है शबो-रोज़*
तमाशा मेरे आगे...
(*दिन रात)